बुद्ध का पुत्र राहुल त्याग का प्रतिक ||
यूं तो आपने त्याग और बलिदान के किस्से-कहानियां बहुत होगी, लेकिन उन किस्से-कहानियों में बुद्ध के पुत्र राहुल की कहानी कहीं आगे है.
जी हां! राहुल की कहानी, त्याग और बलिदान की कहानी. ये कहानी तब शुरू होती है, जब बुद्ध के पिता ने उनके इच्छा के विपरीत जारकर उनका विवाह कर दिया. उस समय महात्मा बुद्ध महज 16 वर्षीय सिद्धार्थ हुआ करते थे.
सिद्धार्थ गौतम ने विवाह से पहले हीं मन बना लिया था की, वह सांसारिक सुखों का परित्याग कर सन्यासी जीवन यापन करेंगे! ऐसे में विवाह होना और फिर, पुत्र राहुल का जन्म होना सिद्धार्थ गौतम के लिए किसी बाधा विपत्ति से कम नही था.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर महात्मा बुद्ध अपने हीं पुत्र को बाधा विपत्ति और दुख से परिभाषित क्यों किया____
जन्म के साथ ही बुद्धा ने त्याग दिया.
जब सिद्धार्थ गौतम 16 साल के थे, तभी उनके पिता सुबोधन ने उनका विवाह यशोधरा से करा दिया. हालांकि सिद्धार्थ गौतम संन्यासी जीवन का पालन करना चाहते थे, लेकिन दाम्पत्य जीवन में बंधने के कारण वह ऐसा नहीं कर पाए.
विवाह के कुछ समय के पश्चात उन्हें पुत्री हुई और उसके कुछ साल बाद 534 ईसा पूर्व में उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. पुत्र होने की खुशखबरी जब दाई मां ने सिद्धार्थ गौतम को सुनाया तो उन्होंने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा-ओह! राहुल है..
हालांकि राहुल के जन्म से पहले सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर जाना चाहते थे. ऐसे में राहुल का जन्म होना किसी अवरोध से कम नही था. बताया जाता है कि यदि सिद्धार्थ गौतम अपने पुत्र का चेहरा देख लेते, तो वह मोह माया में जकड़ जाते और फिर आगे नहीं बढ़ पाते. लिहाजा, वह राहुल के जन्म की अगली रात ही घर से निकल गए.
कहते हैं कि सत्य की खोज में बुद्ध इतने लालायित थे कि उन्होंने पिता धर्म का पालन करना कदापित उचित नहीं समझा.
9 साल बाद पिता और पुत्र हुए आमने-सामने
9 साल बाद सिद्धार्थ गौतम ज्ञान प्राप्त कर अपने परिवार से मिलने राजमहल पहुंचे. उनके आने की खबर जैसे ही यशोधरा को मिली, वह खुश होने की जगह क्रोध से भर उठीं.
उन्होंने बुद्ध को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि आपको हमारी बिल्कुल भी फिक्र
नहीं. आप हमें उस समय छोड़कर कैसे जा सकते हैं, जिस समय हमें आपकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.
नहीं. आप हमें उस समय छोड़कर कैसे जा सकते हैं, जिस समय हमें आपकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.
बुद्ध कुछ कह पाते, इससे पहले ही यशोधरा ने 9 साल के राहुल को हाथ खींचकर उनके सामने खड़ा कर दिया. साथ ही बुद्ध पर कटाक्ष करते हुए बोलीं, राहुल यही तुम्हारे पिता हैं! इस विरासत के स्वामी यही हैं. अपने विरासत में जो मांगना है वह मांग लो.
बुद्ध एक पल के लिए मानों निशब्द थे. उनके पास यशोधरा के किसी प्रश्न का जवाब नहीं था.
दूसरी तरफ राहुल की नन्हीं आंखें बुद्ध की खामोशी में कुछ ढूढ़ रही थीं. बुद्ध ज्यादा देर तक यह देख नहीं सके और बोले, मैं तो एक संन्यासी हूं. मैं तुम्हें क्या दे सकता हूं. राहुल अभी भी खामोश था...
यह देखकर बुद्ध ने अपने शिष्य आंनद से अपना भिक्षापात्र मंगवाते हुए राहुल से कहा, पुत्र मेरे पास इसके अलावा तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है, जो मैं तुम्हें दे सकूं. इस पर राहुल ने उन्हें नमन करते हुए कहा, आप मेरे पिता हैं. आप जो देना चाहें, वह मेरे लिए संपत्ति है.
फिर होना क्या था. आगे बुद्ध ने राहुल को त्याग और बलिदान का ज्ञान देते हुए सन्यास का वरदान दिया और वापस चले गए.
बुद्ध जैसा चमत्कारी दृष्टिकोण नहीं था, फिर भी...
यूं तो 9 साल की उम्र में ही राहुल ने अपने पिता से दान में सन्यासी जीवन का वरदान ले लिया था. साथ ही पिता बुद्ध के दिखाए गए मार्ग पर चलना शुरू कर दिया था. उन तमाम सुख-सुविधाओं से वंचित हो गया, जो एक साधारण बालक को मिला करती थीं.
कुछ वर्ष बीतने के बाद जब राहुल 20 साल का हुआ, तो उसने निश्चय किया कि वह अपने पिता से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर सदैव के लिए बौद्ध भिक्षु बन जाएगा. जबकि, राहुल का व्यक्तित्व बुद्ध के बिल्कुल उलट था.
वह बेहद ही चंचल और राजनीति कौशल से परिपूर्ण था. उसके अंदर अपने पिता जैसा दृढ़ निश्चय और चमत्कारी दृष्टिकोण व्यक्तित्व नहीं था.
बावजूद इसके बौद्ध भिक्षु बनने के लिए वह बुद्ध के पास पहुंच ही गया. वहां उसने बुद्ध से मुक्ति मार्ग और इन्द्रियों पर नियंत्रण का प्रशिक्षण देने का आग्रह किया.
बुद्ध ने राहुल के आग्रह को स्वीकार कर लिया और उसे प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.
बुद्ध का शिष्य बनकर प्राप्त किया मोक्ष ज्ञान
मुक्ति का मार्ग तलाशने निकला राहुल अब भगवान बुद्ध का शिष्य बन चुका था.
मज्झिम निकाय एक बौद्ध धर्म ग्रंथ है. इस निकाय में बुद्ध द्वारा राहुल को आध्यात्मिक दीक्षा का ज़िक्र किया गया है. इसके मुताबिक, जब राहुल की दीक्षा शुरू हुई, तब महात्मा बुद्ध राहुल को एक पेड़ के नीचे ले गए. वह पेड़ उसी बट वृक्ष के समान था, जहां बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
आगे पिता के निर्देश पर राहुल अपनी दोनों आंखों को मूंदकर ज्ञान की प्राप्त करने लगा... अब वह ध्यान में मग्न हो गया था. बुद्ध ने पूछा, राहुल, आंखों में चेतना स्थायी है या अस्थायी? राहुल ने जवाब दिया अस्थायी. बुद्ध ने फिर पूछा, राहुल, इंद्रियां और चेतना स्थाई है या अस्थाई.
राहुल ने पहले की तरह जवाब दिया, अस्थायी! तीसरा सवाल पूछते हुए बुद्ध ने राहुल से पूछा, जो अस्थाई है, उसमें पीड़ा है या आनंद.
राहुल ने जवाब दिया, पीड़ा, प्रभु!
इसी प्रकार से बुद्ध ने एक और प्रश्न पूछा, क्या ऐसी अस्थाई पीड़ादायक वस्तु के बारे में यह सोचना सही है कि यह मेरा है, यह मैं हूं, यह मेरा 'स्व' है? जबकि वह चीज परिवर्तनशील है.
राहुल ने उत्तर दिया, नहीं प्रभु! ऐसी वस्तु हमारी नहीं हो सकती.
आगे महात्मा बुद्ध ने राहुल को सत्य के ज्ञान से परिचित कराया. ज्ञान प्राप्ति के बाद वह अपने आपको बेहद हल्का महसूस कर रहा था. उसकी जागृति चेतना बढ़ चुकी थी. अब वह सांसारिक मोह माया के बंधनों से मुक्त था.
पिता द्वारा दिए गए ज्ञान से वह अनंत प्रकार की लालसाओं से मुक्त था. उसके मन से चिंता और कष्टों के बादल छट चुके थे!
आगे वह बौद्ध भिक्षु बनकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने में जुट गया.
....और राहुल ने त्याग दिए प्राण
पूर्ण रूप से बौद्ध भिक्षु बनने के बाद राहुल की मुलाकात उसके कुछ पुराने दोस्तों से हुई. राहुल को भिक्षु के रूप में देखकर उसके दोस्तों ने कहा, तुम दो बड़े कारणों से बहुत सौभाग्यशाली हो.
पहला यह कि तुम बुद्ध के पुत्र हो और दूसरा, इसलिए क्योंकि तुम्हें बुद्ध से शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला.
हालांकि बताया यह भी जाता है कि राहुल के त्याग ने अपनी माता का जीवन पूरी तरह से बदल कर रखा दिया था. यशोधरा, राहुल से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षुणी बन गई थीं.
इधर, राहुल बौध धर्म के प्रचार-प्रसार में लगा रहा. एक दिन जब बुद्ध जंगल के मार्ग में थक कर विश्राम कर रहे थे, तभी किसी ने बुद्ध को सूचना दी कि आपका पुत्र अब नहीं रहा.
हर प्रकार से बंधनों से मुक्त राहुल अब शारीरिक बंधन से भी मुक्त हो चुके थे.
बताया जाता है कि महान सम्राट अशोक राहुल से प्रभावित होकर उसके सम्मान में एक स्तूप का निर्माण भी कराया था.
तो यह थी महात्मा बुद्ध के पुत्र राहुल से जुड़े कुछ पहलू. अगर आपके पास भी उनसे जुड़ी कोई जानकारी है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करें.
Web Title: Tale of Lord Buddha's Son Rahula,
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