मशीन मनुष्य के अधीन या मनुष्य मशीन के अधीन
मशीन मनुष्य के अधीन या मनुष्य मशीन के अधीन
21वी शदी में मानव उस दौड़ से गुजर रहा है, जहाँ मशीनों ने मानव रुपी समाज को मशीन के अधीन बना दिया है, जैसे जैसे मशीनीकरण ने शारीरिक श्रम को विस्थापित किया, वैसे वैसे वैश्विक समाज का रूप और स्वरूप बदला! वह बदलाव शायद उस समय की जरुरत थी, मनुष्य इस बात से अनभिज्ञ था कि, उसका इजात किया हुआ मशीन भविष्य में उसकी प्रकृतिक क्षमता को कम कर देगी या समाप्त कर देगी| समय में परिवर्तन हुआ और मनुष्य के ऊपर इस का प्रभव दिखाई देने लगा| हथेलियों पर किये हुए कैलकुलेशन पर विश्वास नहीं रहा परन्तु उस कैलकुलेटर पर विश्वास है |वास्तविकता यह भी है की समाज की जरूरत मशीन है और वास्तविकता यह भी है की मशीनों ने आन्तरिक रूप से सामजिक ढांचे को कमजोर कर दिया है|
हमें अमेरिका में रह रहे दोस्त की जानकारी तो है, परन्तु पड़ोस में रह रहे लोंगों की कोई जानकारी नही | कई बार हम देखतें है की पड़ोस में मानसिक बीमारी के कारण लोग अपने धारों में बंद थे, परन्तु यह बात पड़ोसियों को भी नहीं मालूम की कैसे कैसे लोग उनकी पड़ोस में रह रहें है| यह है मशीन द्वारा निर्मित समाज का परिणाम हैं| एक व्यक्ति अपने हाथों में पकड़े हुए मोबाइल फ़ोन को देखता है हँसता है, रोता है, दुःख और संवेदना प्रकट करता है परन्तु यह तमाम बातें मात्र उसी व्यक्ति तक सीमित रह जाता है| हमें यह स्पष्ट दिखाई देता है कि त्योंहारों में के समय में लोग अपने घरों से निकने के वजाए फेसबुक ट्वीटर और व्हट्सएप्प जैसे सोशल नेटवर्किंग साईट से मुबारकवाद की ओपचारिकता निभा देते हैं| ऐसी स्थिति में हम यह कल्पना कैसे कर सकते है की हम एक सामाजिक प्राणी हैं
अक्सर हम किसी सूचनाओं को लेकर इन्टरनेट पर गूगल और विकिपीडिया का प्रयोग करतें है, तथा डिस्प्ले पर पर जो सूचना आती है उन सूचनाओं की पुष्टि किये बिना हीं उन सूचनाओं पर विश्वास कर लेते हैं| इस बात से अनजान की सूचना कितना सही या गलत है, सूचना को जैसा डिस्प्ले पर दिखया जाता है उसको ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेते है| यह हमारी बुद्धिमत्ता को नहीं हमारी मुर्खता को दर्शाता है | शायद गाँधी जी इस बात से भलीभाति परिचित थे|
गाँधी जी का मत था की मशीनें सांप की ऐसी बामी है, जिसमें एक से लेकर एक सौ तक सांप हो सकते है| गाँधी जी मशीनों को भारत की गरीबी और व्याप्त बीमारियों के लिए जिम्मेदार बताते थे| यदि हम अभी भीं यह समझतें हैं की जिस रिमोट का बटन हम दबा रहें हैं कहीं न कहीं हम उस रिमोट के इशारों पर हम खुद हीं नाच रहें हैं| मशीनें हमारे लिए और हमारे समाज के लिए कितना उपयोगी है, इस पर हम सभी को चिंतन और मनन करने के आवश्यकता है|
राहुल कुमार
राहुल कुमार
बहुत अच्छा
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